[बौद्ध भिक्खुओं के पंक्तिबद्ध क्यारियों वाले काषाय वस्त्र चीवर की उत्पत्ति। ]
भगवान बुद्ध राजगीर से चारिका करते हुए मगध में दक्षिणागिरी की ओर जा रहे थे। जाते समय उन्हों ने मार्ग में मगध के पंक्तिबद्ध
खेतों को देखा। सरसों के फूलों से सुशोभित पंक्तिबद्ध
क्यारियों वाले खेतों को देखकर भगवान के मन में एक विचार आया।
उन्हों ने स्थविर आनंद को सम्बोधित करते हुए कहा- आनंद! तुम ये खेत देख रहे हो?
आनंद ने उत्तर दिया- हां भन्ते! भगवान फिर बोले- क्या आनंद! तुम इस खेत की पंक्तिबद्ध, सीमाबद्ध क्यारियों को भी देख रहे हो? आनंद ने कहा- हां, भगवान मैं देख रहा हूँ।
भगवान ने आनंद को आदेश देते हुए कहा, आनंद! आज से भिक्खुओं के चीवर भी इसी आधार पर सिले जाने चाहिए।
भगवान के आदेश का पालन किया गया और क्यारियों के तरह चीवर बना कर पहनने की प्रथा प्रचलित हुई। आज भी क्यारियो जैसे कषाय वस्त्र चीवर बनाए जाते है और चीवर के एक छोर पर स्मशान के कफन का छोटा टुकडा सिला जाता है।
नमो बुद्धाय🙏🙏🙏
21.01.2024
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