[माता-पिता की सेवा वंदना ही श्रेष्ठ है]
शास्ता बुद्ध ने कहा-
"भिक्षुओ ! जिन कुलों के पुत्र माता- पिता की घर में पूजा करते है वे कुल में जहां ब्रह्मा वास करते है।
जिन कुलों के पुत्र माता- पिता की घर में पूजा करते है वे ऐसे कुल में जहां पूर्वाचार्य वास करते है।
भिक्षुओ ! जिन कुलों के पुत्र माता-पिता की घर में पूजा करते है वे कुल दान देने योग्य है अर्थात पूज्य है।
भगवान ने आगे कहा-
भिक्षुओ ! ब्रह्मा- यह माता-पिता का ही पर्याय है।
भिक्षुओ ! पूर्वाचार्य- यह भी माता-पिता का पर्याय है।
भिक्षुओ ! जो व्यक्ति दान देने योग्य है वे भी माता-पिता के ही पर्याय है।
यह किसलिए?
भिक्षुओ, माता-पिता का अपने संतान पर बहुत उपकार होता है। वे पालन- पोषणकरने वाले हैं उन्होंने इस लोक से परिचय कराया है।
ब्रह्माति मातापितरो,
पुब्बाचरियाति वुच्चरे।
आहुनेय्या च पुत्तानं,
पजाय अनुकम्पका।।
तस्मा हि ने नमस्सेय्य,
सक्केरेय्य च पण्डितो।
अन्नेन अथ पानेन,
वत्थेन सयनेन च।
उच्छादनेन न्हापनेन,
पादानं धोवनेन च।।
ताय नं पारिचरियाय,
मातापितूसु पण्डिता।
इधेव नं पसंसन्ति,
पेच्च सग्गे पमोदती'ति।।
अर्थात:
माता पिता ही ब्रह्मा कहे जाते है। माता- पिता ही पूर्वाचार्य कहे जाते है। माता पिता ही दान देने योग्य कहे जाते है। वे अपने संतान पर बहुत अनुकंपा करने वाले है। इसलिए बुद्धिमान संतान को चाहिए कि उन्हें नमस्कार करें। उनको अन्न से ,पान से, वस्त्र से,शयनासन से सत्कार करें। उनको मालिश करें, नहला करें, पाँव धोकर। उनकी सेवा करें, सत्कार करें। जो पण्डित परिचर्या से माता-पिता को संतुष्ट करता है उसकी यहां भी प्रशंसा होती है और मृत्यु होने पर वह स्वर्ग में भी आनंदित होता है।"
माता पिता ही ब्रह्मा है, माता-पिता ही पूर्वाचार्य है। उनके अनंत उपकार अपनी संतान पर है।
माता-पिता की सेवा वंदना ही श्रेष्ठ है।
नमो बुद्धाय🙏🏻🙏🏻🙏🏻
Ref: सब्रह्मक सुत्त
(अंगुत्तरनिकाय)
08.10.2023
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