कोटि सन्थर
(जेतवन विहार श्रावस्ती)
श्रावस्ती नगर के निवासी सुदत्त नाम के श्रेष्ठी अपनी दान पारमीता के कारण 'अनाथपिंडिक' नाम से सुप्रसिद्ध है। उस सुदत्त यानी अनाथपिंडिक ने बगीचे की जमीन खरीद ने के लिए सोने के सिक्के जमीन पर बिछा कर जेत राजकुमार को मूल्य चुकाया था। कुछ जमीन का हिस्सा जेत राजकुमार ने दान में दिया। श्रावस्ती स्थित महाविहार 'अनाथपिंडिकस्स जेतवन विहार'- 'अनाथपिंडिक का जेतवन विहार' नाम से यह स्थान प्रसिद्ध है। आज भी जेतवन विहार के अवशेष श्रावस्ती में देखने को मिलता है।
श्रावस्ती, वर्तमान बलरामपुर से 15 किमी दूर बहराइच रोड स्थित (यु पी) है।
दान पारमीता का उत्तम उदाहरण है जेतवन विहार।
श्रावस्ती का श्रेष्ठि सुदत्त राजगृह ( बिहार ) में भगवान बुद्ध के संपर्क में आया। उसके पुण्य कर्म जाग उठे । श्रावस्ती में वर्षावास करने के लिए सुदत्त ने भगवान को निमंत्रण दिया । श्रावस्ती नगर पहुंच कर सुदत्त श्रेष्ठी भगवान के विहार के लिए योग्य स्थान की खोज करते-करते उसे जेत राजकुमार का बगीचा पसंद आया क्योंकि - वह उद्यान, श्रावस्ती से न अति दूर था, न अति समीप, वहां आने-जाने की सुविधा थी और ध्यान के लिए अनूकूल था। सभी प्रकार से अनुकूलता दिख पडने पर सुदत्त श्रेष्ठी यह बगीचा खरीदने के लिए राजकुमार जेत के पास गया। राजकुमार अपना बगीचा नहीं बेचना चाहता था। उसने सुदत्त को टालने के लिए उसकी क़ीमत "कोटि सन्थर"बता दी ।
सुदत्त ने राजकुमार की जबान पकड ली और तत्क्षण सौदा पक्का कर लिया ।
कोटि सन्थर का अर्थ था -- करोड़ो का बिछावन ।
उस जमाने में बोलचाल की भाषा में इसका मतलब था, बगीचे की सारी भूमि पर एक किनारे से दूसरे किनारे तक सोने के सिक्कों की बिछावन करनी।
श्रेष्ठी सुदत्त ने यही किया । गाडियों में सोना भर-भर कर लाया और उसने बगीचे के एक छोर से दूसरे छोर तक बिछाना शुरू कर दिया ।
जेत राजकुमार यह सब देख कर भौचक्का रह गया। उसने सोचा, अवश्य इस भूमि पर कोई महत्वपूर्ण कार्य होने जा रहा हैं । उनके भी पुण्य कर्म जाग उठे। जेत राजकुमार ने देखा कि जमीन का एक कोना सोना बिछाने के लिए बच गया है और सुदत्त के लोग गाडियां भरकर सोना ला रहे है, तब राजकुमार ने कहा -
"अलं गहपति, मा तं ओकासं सन्थरापेसि"
- बस कर गहपति, इस खाली जमीन को मत ढक ।
"ममेतं दानं भविस्सति"
- यह मेरा दान हो ।
सुदत्त ने जेत राजकुमार की बात को स्वीकार किया। ऐसे बगीचे की अधिकतम जमीन पर सोना बिछाकर सुदत्त ने जमीन का मूल्य चुकाया और जेत राजकुमार ने उस जमीन के थोडे हिस्से को अपनी ओर से विहार बनाने के लिए दान दिया। सुदत्त और जेत राजकुमार दोनों के हिस्से से दान मिला था इस लिए 'अनाथपिंडिक का जेतवन विहार' कहा जाता है। सुदत्त ने भिक्खुसंघ को जेतवन विहार दान में दिया। उसी जेतवन विहार में भगवान बुद्ध २५ वर्षावास ठहरे और महत्वपूर्ण उपदेश दिए।
मूलगंध कूटी, आनंद बोधिवृक्ष और अनेक स्तूप आदि ऐतिहासिक धरोहर आज भी हमें प्रेरणा देने के लिए अस्तित्व में हैं, जो कि भग्नावशेष अवस्था में पाए गए है।
जेतवन विहार के लिए दान देने वाले सुदत्त श्रेष्ठी (अनाथपिण्डिक) और जेत राजकुमार के द्वारा किए गए पुण्य कर्म हमें आज भी दान पारमीता बढ़ाने और बार- बार दान देने की प्रेरणा देते हैं।
नमो बुद्धाय🙏🏻🙏🏻🙏🏻
श्रावस्ती, उत्तर प्रदेश
20.11.2023
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