[ लुम्बिनी महातीर्थ एवं कपिलवस्तु की धरती पर ऐतिहासिक साक्ष्य देखकर हम धन्य हुए । ]
हम, 39 घम्म यात्रियों ने लुम्बिनी जहां भगवान बुद्ध का बोधिसत्व सिद्धार्थ गौतम के रूप में जन्म हुआ था उस पवित्र स्थान का दर्शन किया। इस पवित्र स्थान को चिरकाल तक कायम रखने के लिए महान सम्राट अशोक ने यहां शीला स्तंभ गाढा है। यह प्रमाणित करता है- भगवान बुद्ध ऐतिहासिक है और उनका जन्म यहां लुम्बिनी वन में हुआ था ।
शीला स्तंभ पर घम्म लिपि में लिखा है-
"देवानपियेन पियदसिन लाजिन वीसतिवसाभिसितेन अतन आगाच महीयिते हिद बुधे जाते सक्यमुनी'ति।
सिला विगडभी चा कालापित सिलाथभे च उसपापिते हिद भगवं जाते ति।
लुंमिनिगामे उबलिके कटे अठभागिये च।
अर्थात-
अभिषेक के बीस वर्ष हो चुकने पर देवानांप्रिय प्रियदर्शी, राजा द्वारा स्वयं ( यहां ) आकर पूजन किया गया कायोंकि यहां पर शाक्यमुनि बुद्ध का जन्म हुआ था।
(उनके द्वारा यहां पर ) पत्थर की बहुत बडी दीवार बनवायी गयी और शिला- स्तंभ खड़ा करवाया गया क्योंकि यहां पर भगवान बुद्ध की उत्पत्ति हुई थी।
लुम्बिनी ग्राम के धार्मिक कर अंमाफ कर दिए गए और मालगुजारी के रूप में केवल आठवां हिस्सा ( रखा गया )
[Ref: लघु स्तंभ: रूम्मिदेई]
तथागत बुद्ध ने महाभिनिष्क्रण के पहले जहां 29 साल बिताए वही धरती कपिलवस्तु के अवशेष देखे।
चीनी यात्री हुयेनसांग के द्वारा वर्णित वृतांत को समझने को मौका मिला ।
भदन्त प्रज्ञाशील महाथेरो के द्वारा धम्म देशना हुई ।
रुपिनदेही ( लुम्बिनी ) नगर निगम के डे.मेयर सुश्री कल्पना गौतम के साथ भेंट हुई। लुम्बिनी में बोधिसत्त्व बाबासाहेब डो.आंबेडकर की प्रतिमा स्थापित करने की योजना के विषय में हमें जानकारी दी।
लुम्बिनी और कपिलवस्तु की यात्री करके हम आज कुशीनगर भगवान ने जहां महापरिनिर्वाण प्राप्त किया था वहां पहुंच ने के लिए प्रस्थान कर रहे है।
नमो बुद्धाय🙏🙏🙏
भैरवा, नेपाल
23.11.2023
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