[पेशकर बुनकर कन्या की मरण- स्मृति भावना]
एक समय भगवान ने अपनी दिव्यदृष्टि से देखा कि आलवी के बुनकर की बेटी सोत्तापन्न फल को प्राप्त कर सकती है। ऐसा जानकर तथागत धम्म देशना हेतु पांच सौ भिक्खुओ के साथ आलवी आए। आलवी में अग्गालव विहार में ठहरे। बुनकर की लड़की ने यह सुना कि तथागत अपने पांच सौ भिक्खुओ के साथ आलवी में विहार करते है। उसके मन में इच्छा हुई कि वह भी धम्म सभा में देशना सुनने के लिए जाए। वह षोडसी तीन वर्ष से मरण स्मृति की भावना करती थी।
पेशकार (बुनकर) ने अपनी बेटी को सूत के वेष्ठित तसर लेकर जल्दी आने को कहा। लेकिन, लडकी रास्ते में भगवान की देशना सुनने को बैठ गई।
भगवान ने उस लड़की को देखा यह लड़की मरण स्मृति भावना करती है और शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त होने वाली है। उन्होंने उस बुनकर की लड़की से पूछा-
कुमारी! कहां से आ रही हो?
भन्ते! नहीं जानती हूँ।
कहां जाओगी?
भन्ते ! नहीं जानती।
क्या नहीं जानती हो?
भन्ते! जानती हूँ।
जानती हो?
भन्ते ! नहीं जानती हूँ।
भगवान के साथ इस प्रकार मनमानी बात करते हुए देखकर गांव के लोग उस लड़की पर नाराज हुए, किन्तु भगवान ने उन्हें समझाकर लड़की को पुन: पूछा कि उसने जो उत्तर दिए है, उनका खुलासा करें।
भगवान बोले, कुमारी कहां से आ रही हो? पूछने पर , नहीं जानती हूँ, कह रही हो, इसका क्या अभिप्राय है।
लड़की ने बताया, भगवान मेरे बुनकर के घर से आने को आप जानते हो, किन्तु मैं कहां से मरकर यहां उत्पन्न हुई हूँ, यह नहीं जानती हूँ। इसलिए मैंने आपके यह पूछने पर कि कहां से आ रही हो, यह उत्तर दिया कि नहीं जानती हूँ।
भगवान ने उसके प्रति साधुकार दिया।
लड़की ने दूसरे प्रश्नों के दिए गए उत्तरों का भी इसी प्रकार से सारांश दिया। वह बोली, पूज्य भन्ते! आपके दूसरे प्रश्न का उत्तर मैं नहीं जानती हूँ, इसलिए कह दिया कि मैं नहीं जानती हूँ कि मैं मरकर कहां जाऊंगी और आपके तीसरे प्रश्न के अभिप्राय का उत्तर मैं जानती हूँ, इसलिए कह दिया क्योंकि मैं यह जानती हूँ कि मुझे मरना है और इसी प्रकार चौथे प्रश्न का उत्तर दिया कि मैं यह नहीं जानती हूँ कि किस समय मरूंगी।
भगवान ने चारों प्रश्नोत्तरों के बाद साधुकार दिया और गाथा में कहा-
"अन्धभूतो अयं लोको,
तनुकेत्थ विपस्सति।
सकुन्तो जालमुत्तो'व
अप्पो सग्गाय गच्छति। ।"
- यह लोक अंधे के समान है, यहां देखने वाले थोडे ही है जाल से मुक्त पक्षी की भांति विरल ही स्वर्ग को जाते हैं। अर्थात कम ही सुगति को प्राप्त होते हैं।
नमो बुद्धाय🙏🏼🙏🏼🙏🏼
Ref: धम्मपद: लोकवग्गो
16.06.2024
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