Ticker

6/recent/ticker-posts

🌻धम्म प्रभात🌻

🌻धम्म प्रभात🌻 

[रतन सुत्त]

एक बार जब वैशाली में तीन प्रकार के भय- अमनुष्यों का प्रकोप, अकाल (सुखा) और बीमारी (महामारी)  उत्पन्न हुए थे तब वैशाली के लोगों के दुःख निवारण के लिए वैशाली के लोगों ने   भगवान बुद्ध को वैशाली में आने के लिए आग्रह किया।  महाकरूणानिधान बुद्ध ने लिच्छवीओं के आग्रह से वैशाली आए। उसी क्षण, उसी महूरत में चारों दिशाओं से महान गर्जन पैदा हुई और महामेघ गरजने लगे भीषण वर्षा हुई उसी बारिश में जहां मरे हुए लोग थे सब गंगा में बह गए वहां की धरती स्वच्छ हुई बीमारी भी वर्षा के जल में बह गई, अकाल खत्म हो गया ।
बुद्ध ने आनंद थेर को रत्न सुत्त का उपदेश दिया। 
थेेर आनंद यह रतन सुत्त याद करके वैशाली नगर के तीन चक्कर लगाते हुए, इस रतन सूत्र का पाठ किया। इसके प्रभाव से वहां का दुर्भिक्ष (अकाल) अमनुष्यों का प्रकोप, रोग (महामारी) शांत हुई, परित्राण हुआ । अगर कोई श्रद्धालू सच्चे मन से इस रतन सुत्त का पाठ करेगा तो उसके दुःख दर्द समाप्त हो जाते है। लोगों के हित और सुख के लिए रतन सुत्त दिया गया है। 

"कोटीसतसहस्सेसु,
 चक्कवालेसु देवता।

यस्साणं पटिगण्हन्ति,
यञ्च वेसालिया पुरे।।

रोगा-मनुस्स-दुब्भिक्खं,
सम्भूतं तिविधं भयं।

खिप्पमन्तरधापेसि,
परित्तं तं भणामहे।।

"यानीध भूतानि समागतानि,

भूम्मानि वा यानि व अन्तलिखे।

सब्बे व भूता सुमना भवन्तु,

अथोपि सक्कच सुणन्तु भासितं।।

(1)
तस्मा हि भूता निसामेथ सब्बे,

मेतं करोथ मानुसिया पजाय।

दिवा च रत्तो च हरन्ति ये बलिं,  तस्मा हि ने रक्खथ अप्पमत्ता।।

(2)

यं किञ्चि वितं इध वा हुरं वा, सग्गेसु वा यं रतनं पणीतं। 

न नो समं अत्थि तथागतेन, इदम्पि बुद्धे रतनं पणीतं।

एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु।।

(3)

खयं विरागं अमतं पणीतं,

यदज्झगा सक्यमुनि समाहितो।

न तेन धम्मेन समत्थि किञ्चि,

इदम्पि धम्मे रतनं पणीतं।

एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु।।

(4)

यं बुद्धसेट्ठो परिवण्णयी सुचिं,

समाधिमानन्तरिकञ्ञमाहु।

समाधिना तेन समो न विज्जति,

इदम्पि धम्मे रतनं पणीतं।

एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु।।

(5)

ये पुग्गला अट्ठ सतं पसत्था,

चत्तारि एतानि युगानि होन्ति।

ते दक्खिणेय्या सुगतस्स सावका,

एतेसु दिन्नानि महप्फलानि,

इदम्पि सङ्घे रतनं पणीतं।

एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु।।

(6)

ये सुप्पयुत्ता मनसा दल्हेन,

निक्कामिनो गोतमसासनम्हि।

ते पत्तिपत्ता अमतं विगय्ह,

लद्धा मुधा ‌निब्बुतिं भुञ्जमाना।

इदम्पि सङ्घे रतनं पणीतं।

एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु।।

(7)

यथिन्दखीलो पठविं सितो सिया,

चतुब्भि वातेहि असम्पकम्पियो।

तथूपमं सप्पुरिसं वदामि,

यो अरियसच्चानि अवेच्च पस्सति।

इदम्पि सङ्घे रतनं पणीतं।

एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु।।

(8)

ये अरियसच्चानि विभावयन्ति,

गम्भीरपञ्ञेन सुदेसितानि।

न ते भवं अट्ठममादियन्ति।

इदम्पि सङ्घे रतनं पणीतं।

एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु।।

(9)

सहावस्स दस्सन सम्पदाय,

तयस्सु धम्मा जहिता भवन्ति।

सक्कायदिट्ठि विचिकिच्छितं ‌च,

सीलब्बतं वा पि यदत्थि किञ्चि।।

(10)

चतूहपायेहि च विप्पमुत्तो,

छच्चाभिठानानि अभब्बो कातुं।

इदम्पि सङ्घे रतनं पणीतं।

एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु।।

(11)

किञ्चापि सो कम्मं करोति पापकं,

कायेन वाचा उद चेतसा वा।

अभब्बो सो तस्स पटिच्छादाय,

अभब्बता दिट्ठपदस्स वुत्ता।

इदम्पि सङ्घे रतनं पणीतं।

एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु।।

(12)

वनप्पगुम्बे यथा फुस्सितग्गे,

गिम्हानमासे पठमस्मिं गिम्हे।

तथूपमं धम्मवरं अदेसयि,

निब्बानगामिं परमं हिताय।

इदम्पि बुद्धे रतनं पणीतं।

एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु।।

(13)

वरो वरञ्ञू वरदो वराहरो,

अनुत्तरो धम्मवरं अदेसयि।

इदम्पि बुद्धे रतनं पणीतं।

एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु।।

(14)

खीणं पुराणं नवं नत्थि सम्भवं,

विरत्तचित्तायतिके भवस्मिं।

ते खीणबीजा अवरूळिहछन्दा,

निब्बन्ति धीरा यथा'यं पदीपो।

इदम्पि सङ्घे रतनं पणीतं।

एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु।।

(15)

यानीध भूतानि समागतानि,

भुम्मानि वा यानि'व अन्तलिक्खे,

तथागतं देवमनुस्सपूजितं,

बुद्धं नमस्साम सुवत्थि होतु।।

(16)

यानीध भूतानि समागतानि,

भुम्मानि वा यानि'व अन्तलिक्खे,

तथागतं देवमनुस्सपूजितं,

धम्मं नमस्साम सुवत्थि होतु।।

(17)

यानीध भूतानि समागतानि,

भुम्मानि वा यानि'व अन्तलिक्खे,

तथागतं देवमनुस्सपूजितं,

सङ्घं नमस्साम सुवत्थि होतु।।"

(18)
साधु साधु साधु
शीलवान और श्रद्धावान व्यक्ति द्वारा सच्चे दिल से रतन सुत्त का किया गया पाठ कल्याण करेगा ही।

नमो बुद्धाय🙏🙏🙏
20.08.2024

टिप्पणी पोस्ट करा

0 टिप्पण्या