[संकिसा एक ऐतिहासिक बौद्ध तीर्थ स्थल]
संकिसा भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के फ़र्रूख़ाबाद जिले के पखना रेलवे स्टेशन से सात मील दूर काली नदी के तट पर एक बौद्ध तीर्थ स्थल है। इसका प्राचीन नाम संकाश्य है। ई.पू. 522 में गौतम बुद्ध यहां पर आये थे। वर्तमान संकिसा एक टीले पर बसा छोटा सा गाँव है। टीला बहुत दूर तक फ़ैला हुआ है। यहां स्तूप पर ईंटों के ढेर पर बिसहरी देवी का छोटा-सा मंदिर बना कर के ब्राह्मणों ने प्राचीन बौद्ध स्तूप पर कब्जा कर रखा है ।
बौद्धों के लिए यह पवित्र स्थल है। माना जाता है कि भगवान बुद्ध ने अपनी माता महामाया को देव लोक में अभिधम्म का उपदेश देकर वापस संकिसा में अवतरण किया था। उस समय सारिपुत्र, महामोग्गलायन आदि सहित भिक्खुसंघ उपस्थित था। इस घटना को चिरकाल तक स्मृतियों में रखने के लिए महान देवानामप्रिय सम्राट अशोक ने स्तूप का निर्माण करवाया था। यह सम्राट अशोक के द्वारा बनवाया 84000 स्तूपो में से एक था जो कि अब एक ईंटों का ढेर बन गया है। नि:संदेह यह स्थान बौद्धों का है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के द्वारा भी इसे बौद्ध स्थान ही माना गया है। इस स्थान पर किसी भी प्रकार की खुदाई या ईमारत नहीं बना सकते हैं। पास ही अशोक स्तम्भ का शीर्ष है, जिस पर हाथी की मूर्ति निर्मित है। आतताइयों ने हाथी की सूंड को तोड डाला है।
बौद्ध काल के समय यह नगर पांचाल की राजधानी कांपिल्य से अधिक दूर नहीं था।
महाजनपद युग में संकिसा पांचाल जनपद का प्रसिद्ध नगर था। बौद्ध अनुश्रुति के अनुसार यह वही स्थान है, जहाँ बुद्ध ने अपने प्रिय शिष्य आनन्द के कहने पर वर्षावास के पश्चात अश्विन पूर्णिमा के दिन 522 ईसा पूर्व संकिसा में पधारे थे । उस समय संकाश्य नगरी बौद्ध राजाओं की राजधानी थी। शाक्य राजा दीर्घशक्र का शासन था। यहाँ आये व संघ में स्त्रियों की प्रवृज्या पर लगायी गयी रोक को तोड़ा था और भिक्षुणी उत्पलवर्णा को दीक्षा देकर बौद्ध संघ का द्वार स्त्रियों के लिए खोल दिया गया था। बौद्ध ग्रंथों में इस नगर की गणना उस समय के बीस प्रमुख नगरों में की गयी है। प्राचीनकाल में यह नगर निश्चय ही काफ़ी बड़ा रहा होगा, क्योंकि इसकी नगर भित्ति के अवशेष, जो आज भी हैं। लगभग चार मील की परिधि में हैं। चीनी यात्री फ़ाह्यान पाँचवीं शताब्दी के पहले दशक में यहाँ मथुरा से चलकर आया था और यहाँ से कान्यकुब्ज, श्रावस्ती आदि स्थानों पर गया था। उसने संकिसा का उल्लेख सेंग-क्यि-शी नाम से किया है। उसने यहाँ हीनयान और महायान सम्प्रदायों के एक हज़ार भिक्षुओं को देखा था। कनिंघम को यहाँ से स्कन्दगुप्त का एक चाँदी का सिक्का मिला था ।
विशाल 'सिंह' प्रतिमा सातवीं शताब्दी में युवानच्वांग ने यहाँ आया और उसने 70 फुट ऊँचाई स्तम्भ देखा था, जिसे सम्राट अशोक ने बनवाया था। उस समय भी इतना चमकदार था कि जल से भीगा-सा जान पड़ता था। स्तम्भ के शीर्ष पर विशाल सिंह प्रतिमा थी। उसने अपने विवरण में इस विचित्र तथ्य का उल्लेख किया है कि यहाँ के विशाल मठ के समीप निवास करने वाले भिक्षुओं की संख्या कई हज़ार थी । यह बुद्ध के समय में भी यह एक ख्याति प्राप्त नगर था ।
हर बौद्ध तीर्थ स्थल की तरह संकिसा को नष्ट किया गया तब यहां भिक्षु लोग नहीं रहे तो किसी ने उनका जीर्णोद्धार कराने की चेष्टा नहीं की। इमारते भग्न होकर पहले खंडहर हुई फिर समय बितने पर अपने ही मलवे में दबकर टीले के रूप में हो गई। फिर भी ऐतिहासिक लेखों, मुहरों, मूर्तियों और सिक्कों आदि के द्वारा इस स्थान के प्राचीन स्मारकों के विषय में जितना ज्ञात हुआ है। वह इसकी महत्ता को सिद्ध करने के लिए काफी है।
इस स्तूप(टीला) के स्वामित्व को लेकर 33 वर्ष से न्यायालय में मामला विचाराधीन है।
संकिसा स्थित विवादित परिसर को पुरातत्व विभाग ने अधिग्रहीत कर रखा है। विवादित परिसर में स्थित टीले को बौद्ध अनुयायी स्तूप मानकर पूजा अर्चना करते हैं, जबकि सनातनधर्मी टीले पर विराजमान मां बिसारी देवी व अन्य देवी देवताओं की प्रतिमाओं की पूजा करते हैं। बौद्ध अनुयायी व सनातनधर्मी के बीच इसको लेकर 33 वर्षों से न्यायालय में मुकदमा विचाराधीन है। हर साल बुद्ध महोत्सव के दौरान दोनों पक्षों के आमने- सामने आ जाते हैं पुलिस व प्रशासन को कड़ी सुरक्षा व्यवस्था करनी पडती है। दोनों पक्षों में कई बार पथराव व फायरिंग की घटनाएं भी हो चुकी हैं। उत्तेजक बयानबाजी से माहौल और बिगड़ जाता है बौद्ध अनुयायीयों का कहना है 1940 से संकिसा में प्रतिवर्ष विभिन्न नामों से बुद्ध महोत्सव का आयोजन होता रहा है ।
वर्तमान में यहां एक The Royal Residency बना है , कई देशों के सुन्दर बौद्ध विहार हैं । यहां दुनिया का सबसे ऊंचा गज स्तंभ बना हुआ है जिसकी ऊंचाई 80 फीट है , जिसका उद्घाटन परम पूज्य दलाई लामा ने किया, यहां हर साल देश विदेश से हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते रहते हैं ।
हमारे धम्म मित्र अशोक प्रियदर्शी की अगुवाई में एक अशोकाराम विहार निर्माणाधीन है। अशोका विहार के लिए हाल ही में महाउपासक ज्ञान रत्न शाक्य जी (Lalitpur,YMBA, Nepal) के द्वारा भगवान तथागत बुद्ध की धातुओं से बनी 5 फीट उंचाई और 200 kg से भारी वजन में भव्य प्रतिमा दान में मिली है।
बौद्ध उपासक और उपासिकाओ को जीवन में एक बार संकिसा की पवित्र धरती पर कदम रखना चाहिए जहां शास्ता बुद्ध के पवित्र चरण पडे थे।
नमो बुद्धाय🙏🙏🙏
15.08.2023
1 टिप्पण्या
धम्म प्रभात छान उपक्रम.... उपक्रम लेखकाचे व चित्रा न्यूज चे मनापासून धन्यवाद.. माजी उपसंपादक, पत्रकार, ABC AUDITOR, 9892459630
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