[ एक देवदत्त कल और देवदत्त आज अनेक ]
एक खलनायक था, उस खलनायक का नाम था देवदत्त। अंतिम समये वह तथागत के दर्शन के लिए जेतवन पहुंचना चाहता था लेकिन जेतवन के बहार तथागत के दर्शन के बिना अपने पाप कर्मो के विपाक के कारण जमीन में धंस कर दलदल में मर गया।
उपरोक्त घटना तथागत के समय की है। लेकिन, आज 2500 साल के बाद भी देवदत्त पैदा होते है और संघ में फूट डालने का काम करते है।
भगवान के संघ में देवदत्त ने पापकर्मों द्वारा उसने अपने चीवर को मलिन और दागी किया।
देवदत्त का इतिहास:
कपिलवस्तु के राजपरिवार के अनेक युवकों के साथ देवदत्त भी प्रव्रजित हुआ था। वह अत्यधिक महत्वाकांक्षी व्यक्ति था। समय बीतता गया और देवदत्त भगवान बुद्ध का स्थान लेने के स्वप्न देखने लगा। एक बार उसने तथागत से कहा कि वे वृद्ध हो गए है, अत: भिक्खुसंघ का मुखिया उसे नियुक्त किया जाए। भगवान जानते थे कि देवदत्त उनका उत्तराधिकारी बनने योग्य नहीं है। इसलिए, भगवान ने ऐसा करना स्वीकार नहीं किया। इस कारण से देवदत्त भगवान का विरोधी हो गया और उनकी हत्या करने का प्रयास करता रहा।
देवदत्त ने भिक्खुसंघ में फूट पैदा करनी आरंभ कर दी। वह कुछ भिक्खुओं को बहका कर उन्हें अपने साथ करके एक पृथक भिक्खुसंघ बनाया। लेकिन, सारिपुत्त के समझाने पर जो भिक्खु देवदत्त के साथ गए थे वे तथागत के पास लौट आए। यह देखकर देवदत्त ने वैर बढाया और षडयंत्र करने लगा।
- राजसिंहासन के लिए अजातशत्रु को उकसाया और सम्राट बिम्बिसार को अपने बेटे के हाथों कैद करके मरवाया।
- भगवान बुद्ध की हत्या करने के लिए राजगृह में भयानक नालागिरि हाथी को सडक पर छुडा दिया।
- गृध्रकूट पर्वत पर से शिलाखण्ड को तथागत पर धकेल दिया।
देवदत्त के ऊन पाप कर्मों का फल मिलने लगा। राजगृह के लोगों ने उसे भोजन देना बंद कर दिया। वह रोग ग्रस्त हो गया।
जब उसे अपने पाप कर्मों के वजह से उस दुःख पडने लगे तब उसे पश्चात्ताप हुआ। सोचा, मैं भगवान के पास जाकर उनसे माफी मांगुँ। ऐसा मनमें करके वह भगवान के दर्शन के लिए श्रावस्ती की ओर चल पडा।
देवदत्त राजगृह से श्रावस्ती की सफर करके श्रावस्ती पहुंचा तब वह बहुत बीमार था, थक गया था। उनके सेवक थक गए थे। इसलिए वे थोडा आराम के लिए तालाब के पास रूके। तालाब जेतवन के पास लेकिन जेतवन के बाहर था। देवदत्त पालखी से उतरा। तालाब के पास पानी पीने के लिए जैसे गया तो वह तालाब के दलदल में फंस गया, फंसते गया और बाहर निकल नहीं पाया। अंतमें दलदल में ही उनके प्राण निकल गए, धरती उसे निगल गई। तथागत के दर्शन करने की उसकी अंतिम इच्छा पूर्ण नहीं हुई।
यही उसके कुकर्मों का फल था।
भिक्खुसंघ हो या उपासक संघ हो,
जो लोग संघ में फूट डालते है, वे पापी है। उनके द्वारा किए गए पापों का फल वैसा ही मिलता है जैसा फल खलनायक देवदत्त को मिला।
नमो बुद्धाय🙏🏼🙏🏼🙏🏼
21.05.2024
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